STORYMIRROR

Rachna Suneel

Abstract

3  

Rachna Suneel

Abstract

प्रेम

प्रेम

1 min
397

प्रेम, एक ज्ञान 

जिसे सभ्यताओं ने खोया 

एक दर्द जिसे 

समाजों ने ढोया

खुरदरी आवाजों के 

बीच का ख़ालीपन 

किसी कवि के 

भावों का नुकीलापन


भोले मन की आशा

मौन की सतरंगी भाषा 

देह की अतरंगी महक 

कस्तूरी की परिभाषा 

जैसे सोने से पहले 

नींद का नशा

वैसे जीने के लिये 

प्रेम को महसूसना

प्रेम सर्वव्याप्त है

अलौकिक है


निश्छल है सरल है

आकार विहीन तरल है 

प्रेम प्राकृतिक है सहज है 

जैसे आकार में निराकार 

स्वाभाविक अभ्यास है 

जैसे बिना प्रयास

साँसों का आना जाना 

भूल जाना प्रेम को और 

बस प्रेम हो जाना

ऐसे डूब जाना कि 

ढक जाना आपादमस्तक

थामने के लिये प्रेम को 

उसे छोड़ना होगा

क्यूँकि पंख तो होते हैं पर 

प्रेम की उंगलियाँ नहीं होती....!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract