जिंदगी
जिंदगी
लक्ष्य कभी साधा तो, राहों पर भाग-भाग,
कुछ खोकर कुछ पाने का सार हुई जिंदगी।
जब कभी सोचा तो, रातों को जाग-जाग,
टूटे छूटे बिखरे रिश्तों का भार हुई जिंदगी।
कभी ये न जाना न सोचा न समझा,
एक जिंदगी में ही कैसे हजार हुई जिंदगी।
कभी जब माना है समझा है जाना है,
नाखुशी में भी हँसकर गुलज़ार हुई जिंदगी।
कभी जब सपनों की मरीचिका भगाए,
भटकी हुई राहों में भटक खार हुई जिंदगी।
कभी जब मंजिल जान कहीं पर थम गए,
तो हजार-हजार राहें बार-बार हुई जिंदगी।
कभी हुई तार-तार एहसासों से हार-हार,
व्यर्थ शब्दों की अंतहीन कतार हुई जिंदगी।
कभी निशब्द निर्वाक शब्दहीन भावों-सी,
निरर्थक बस आँसुओं का भार हुई जिंदगी।