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Anita Sharma

Abstract Fantasy

4.7  

Anita Sharma

Abstract Fantasy

वो अलबेला

वो अलबेला

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वो अलबेला लगता है पर अति सरल है

भावों में नहीं बहता पर जल सा तरल है

अंतर्मन को जगाती लफ़्ज़ों की परिभाषा

ढूंढ लेता है वो निराशा में गुम हुई आशा

छुपे हैं एहसास कभी न बोलने की कसम लेकर

वो सादगी से कई बार...हर बात कह देता है!


लिखता है हर एहसास बिना लाग-लपेट के

वो आम ज़िन्दगी से रोज़ सवाल चुनता है

बेहद जज़्बाती है लेकिन कठोर बना रहता है

वो कितने तूफ़ान समेटे वट से तना रहता है 

छुपे हैं एहसास कभी न बोलने की कसम लेकर

वो सादगी से कई बार...हर बात कह देता है!


उद्वेग फिर भी मन के शायद दर्शाता नहीं है,

जुलाहे सा लफ़्ज़ों का आवरण बुनता रहता है

ढक लेता है अक्स को उस आवरण में...क्यों!

बन विदूषक चेहरे पर मुस्कान खींच लेता है!

छुपे हैं एहसास कभी न बोलने की कसम लेकर

वो सादगी से कई बार...हर बात कह देता है!


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