STORYMIRROR

Anita Sharma

Abstract Tragedy

4  

Anita Sharma

Abstract Tragedy

जिम्मेदार

जिम्मेदार

1 min
347


क्लांत मन से

ज़िम्मेदारियों के कूबड़ की

ऊँचाई रोज़ नापता वो शख्श

जाने किस बात की खलिश

सीने में दबाये रहता है!


जितना झुकता जा रहा

उतना रुकता जा रहा;

एक दिन उठा

ज़िम्मेदारियों की कोठरी का

किवाड़ लगा...चल पड़ा!


ज़िन्दगी से उधार लेकर कुछ पल,

स्मृतियों की पोटली काँधे पर लादे

स्वयं को शीर्ष पर खड़ा पाता है;


कदमताल कुछ तेज़ करता,<

/p>

ज़मीन नापते,

दिन-रात एक करता हुआ

निश्चिंत अवस्था में दौड़ लगाता है!


यकायक उड़ान भरता है असीमित

न कोई ओर...ना ही छोर

शून्य में पहुंचे हुए

टकराता जाता है…

भ्रम की चट्टानो से;


अंततः एक

विद्रोह काट देता है…'पर' उसके

वेग उसका थम जाता है!

फिर खड़ा है वो वही

जहाँ से चला था…!


क्या ठग लिया गया

या लौट आया स्वतः ही !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract