Anita Sharma

Abstract Tragedy

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Anita Sharma

Abstract Tragedy

जिम्मेदार

जिम्मेदार

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क्लांत मन से

ज़िम्मेदारियों के कूबड़ की

ऊँचाई रोज़ नापता वो शख्श

जाने किस बात की खलिश

सीने में दबाये रहता है!


जितना झुकता जा रहा

उतना रुकता जा रहा;

एक दिन उठा

ज़िम्मेदारियों की कोठरी का

किवाड़ लगा...चल पड़ा!


ज़िन्दगी से उधार लेकर कुछ पल,

स्मृतियों की पोटली काँधे पर लादे

स्वयं को शीर्ष पर खड़ा पाता है;


कदमताल कुछ तेज़ करता,

ज़मीन नापते,

दिन-रात एक करता हुआ

निश्चिंत अवस्था में दौड़ लगाता है!


यकायक उड़ान भरता है असीमित

न कोई ओर...ना ही छोर

शून्य में पहुंचे हुए

टकराता जाता है…

भ्रम की चट्टानो से;


अंततः एक

विद्रोह काट देता है…'पर' उसके

वेग उसका थम जाता है!

फिर खड़ा है वो वही

जहाँ से चला था…!


क्या ठग लिया गया

या लौट आया स्वतः ही !


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