आ...लाप
आ...लाप
गुप्त आत्मालाप से
जाग्रत हो उठती है,
आत्म अनुभूतियाँ,
भाव सोख लेता है हृदय,
संवाद नहीं करता
बस मौन रहता है…
एक रहस्य जन्म लेता है
अंतर्विरोध पनप जाता है!
गुप्त प्रेमालाप से
जाग्रत हो उठती है…
प्रेम आसक्तियां
भाव उघाड़ देता है हृदय,
संवाद करने को आतुर
बस गौर करता है…
रहस्य...कहानी गढ़ता है,
एक प्रतिरोध पनप जाता है!
अंततः गहन वार्तालाप
उजागर कर देता है…
भ्रांतियां,भ्रम और भटकन,
हृदय करता हैं आत्मचिंतन;
भाव उड़ जाते हैं जैसे बेनाम
खत;
इंतज़ार है ढुलकी पलकों को,
अनजानी आहट का!
रहस्य के खुल जाने का…!
भोर से सांझ और सांझ से भोर,
चौखट पर टकटकी…
प्रतीक्षारत...एकांकी...कठोर,
किन्तु द्रवित मन...बस शांत है!
ढिबरी की जलती लौ
और चाँद की रौशनी में होती,
तकरार के बीच...बाकी है तो
स्मृतियों के पुलिंदे,
सुलगन और सिसकीयां…
कभी न बुझने वाली!
अत्यंत …रहस्यमयी है
भ्रांतियां,भ्रम और भटकन,
प्रेम पाश के चंगुल में फंसी
भावहीन आत्म अनुभूतियाँ!
आ...लाप मौन है…
अंतिम आस के बादल
बरसते क्यों नहीं?