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Devendra Singh

Abstract

4.8  

Devendra Singh

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कलम चलदर्द लिख

कलम चलदर्द लिख

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178


कलम चल

लगा के दम चल

दर्द लिख

मेरा लिख

इसका लिख

जिसका दिखे

उसका लिख

कलम चल दर्द लिख


सूखा लिख

भूखा लिख

हारी लिख

बीमारी लिख

बिन दवा के लाल मरा

माता की लाचारी लिख

कलम चल दर्द लिख


खेत लिख

फसलें लिख

बिगड़ गयीं जो

नस्लें लिख

कृषकों की बर्बादी लिख

तड़प रही आबादी लिख

लोकतंत्र की बंदिश लिख

नेता की आज़ादी लिख

कलम चल दर्द लिख


खुले हुए मदिरालय लिख

बन्द पड़े विद्यालय लिख

अनपढ़ होती जनता लिख

धर्म ध्वजा को तनता लिख

दीना की मजबूरी लिख

मिलती नहीं मजूरी लिख

लिखने को तो बहुत पड़ा पर

है जो बात जरूरी लिख

कलम चल दर्द लिख


झूठा हर अश्वासन लिख

पांच किलो बस राशन लिख

मिलती रोज दिलाशा लिख

धूमिल होती आशा लिख

मंहगा होता खाना लिख

अच्छा कोई बहाना लिख

मरियल होता हंस देख ले

कौआ खाता दाना लिख

कलम चल दर्द लिख


धर्म भीड़ उन्मादी लिख

दंगा और फसादी लिख

जाति-पाति की दूरी लिख

शोषित की मजबूरी लिख

पीड़ित होती अबला लिख

झूठ लिखे तो सबला लिख

शांति व्यवस्था गायब है

सिर पे बजता तबला लिख

कलम चल दर्द लिख।


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