उलझन
उलझन
सुनहरे कल की आशा में हर इक इंसान उलझा है
सोंचकर कर्म मानव के मेरा भगवान उलझा है
जाति और धर्म की खाई हुई गहरी यहाँ इतनी
मुहब्बत मर गयी तन्हा मुआँ नादान उलझा है।
सुनहरे कल की आशा में हर इक इंसान उलझा है
सोंचकर कर्म मानव के मेरा भगवान उलझा है
जाति और धर्म की खाई हुई गहरी यहाँ इतनी
मुहब्बत मर गयी तन्हा मुआँ नादान उलझा है।