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Devendra Singh

Tragedy Inspirational Others

4.9  

Devendra Singh

Tragedy Inspirational Others

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

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कहीं बहन पे प्यार बहेगा, कहीं और हैवान बनेंगे

सब कुछ तो हम बन बैठे हैं जाने कब इंसान बनेंगे

हाथ में राखी, नज़र बदन पर

किस दुनिया के वासी हो गए

रिश्तों के  सौदागर  बन  के

जिस्मों के अभिलाषी हो गए

दिन भर का है शोर - शराबा कल से फिर शैतान बनेंगे

सब कुछ तो हम बन बैठे हैं जाने कब इंसान बनेंगे

भक्षक भी अपनी बहनों से

वादा तो करता ही   होगा

मान के सबको बहन रहेगा

डींगें तो भरता  ही   होगा

शर्म बेचकर खाने वाले कब बहनों का मान बनेंगे

सब कुछ तो हम बन बैठे हैं जाने कब इंसान बनेंगे

पर्व नहीं ये एक दिवस का

जिम्मेदारी आस है इसमें

रेशम की पतली डोरी है

रक्षा का विश्वास है इसमें

एक ही आशा रखती बहना, भाई मेरा सम्मान बनेंगे

सब कुछ तो हम बन बैठे हैं जाने कब इंसान बनेंगे

जब हर  नारी में दिखेगी

हमें  हमारी  बहन  दुलारी

तब इस जग में बच पाएगी

पीड़ाओं से हर इक नारी

तब जाकर हम भी बहनों की आन-बान और शान बनेंगे

सब कुछ तो हम बन बैठे हैं जाने कब इंसान  बनेंगे।।


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