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R Rajat Verma

Tragedy

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R Rajat Verma

Tragedy

काला टीका

काला टीका

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कल छली गई थी मैं,

कल फिर छली जाऊंगी,

कब तक खुद को अबला कहकर,

यूंही पछताऊंगी!


है बदन मेरा भी छल्ली इतना,

आखिर कब तक चिल्लाऊंगी,

गहन विचार में डूबी हूं मैं,

क्या घुट के मर जाऊंगी!


सिर पर पल्लू, गोद में बच्चा,

क्या वस यही कर पाऊंगी?

बीच बाज़ार न होऊं शिकार,

वर्ना कैसे जी पाऊंगी!


प्रेम पति, प्रेम पिता, 

प्रेम माता कहलाऊंगी, 

जो बच गई नज़र से समाज की,

काला टीका लगाऊंगी!


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