बादल
बादल
एक बार में बरस जाऊं,
तो बादल किस काम का,
एक पल में ही सिमट जाऊं,
तो उफ़ान किस काम का,
हवा ने रुख़ ज़ोर किया है,
एक पल में ही ठहर जाऊं,
तो तूफान किस काम का,
एक बार में बरस जाऊं,
तो बादल किस काम का।
अग्नि सा बरस जाऊं,
तो नीर किस काम का,
शोलों से दहल जाऊं,
तो राख़ किस काम का,
होठों पे आके रुकूं तेरे,
न चाहते हुए भी फिसल जाऊं,
तो पीर किस काम का,
एक बार में बरस जाऊं,
तो बादल किस काम का,।