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Sachin Korla

Tragedy

4.0  

Sachin Korla

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आखिर मेरी गलती क्या थी

आखिर मेरी गलती क्या थी

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आखिर मेरी गलती क्या थी,

यही ना कि मैं एक लड़की थी।

या बता दो मुझे की मेरे कपड़ो में कोई कमी थी,

नहीं तो सच कह दो कि उन

दरिंदों की नियत सही नहीं थी।


रोज की तरह अपने काम से घर लौट रही थी मैं,

स्कूटी की और नजर पड़ी तो वो पंक्चर था,

क्या यह स्कूटी का पंक्चर महज किस्सा था ?

या फिर यह भी उनकी दरिंदगी का एक हिस्सा था।

मैं हैरान थी, परेशान थी,


रात की धीमी-2 सर्द हवाएं भी मुझको चुभने लगी थी,

जिस हाईवे और टॉल-प्लाज़ा से रोज गुज़रती थी,

उसकी खामोशी भी जैसे मानो मुझे खाने लगी थी।


मदद के लिए टोल-प्लाजा में इंतज़ार कर रही थी,

इसी उम्मीद में की कोई मदद का हाथ बढ़ाएगा,

पर शायद भूल गयी थी मैं इस कलयुग की सच्चाई,

क्योंकि मेरा ध्यान ही रहता था हमेशा ढूंढने में अच्छाई।


कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था,

शायद यह वहां अनजान लोगों की

मौजूदगी का कारण था,

एक शक्श मेरी तरफ

मदद का हाथ बढ़ाने आया था,

मैं तब इस बात से वाकिफ नहीं थी कि

वो मेरी मौत का पैगाम लाया था।


फिर मैंने अपनी बहन को फ़ोन घुमाया,

और सारी दास्तां का किस्सा सुनाया।

थोड़ी मैं सहमी थी, डर लग रहा था,

इसका ज़िक्र भी मैने अपनी बहन को कर दिया था।


शायद बहन का कहा मैंने मान लिया होता,

कैब बुक करके घर चली गयी होती,

पर मैंने यह कहकर मना कर दिया कि एक सख्श

मदद का हाथ बढ़ा रहा है,

मुझे अच्छा इंसान लग रहा है,

मेरी स्कूटी ठीक करवाकर मुझे

सेफली घर भेजने का आश्वाशन दे रहा है।


आखिर मेरी गलती क्या थी,

यही ना कि मैं एक लड़की थी।

मैं इस बात से वाक़िफ़ नहीं थी,

कि वो दरिंदे सुबह से मेरी ताक में थे,

मेरी मदद करने का ढोंग भी

उनका सोचा समझा प्लान था।


वो एक दरिंदा स्कूटी ठीक करवाने के बहाने

मुझे दूर ले गया,

मैंने भी उसे भगवान का फरिश्ता समझ

उस पर विश्वास कर लिया।

मेरी आंखें तब खुली जब उसके कुछ और साथी

रास्ते में मिले थे,


मुझे कुछ गड़बड़ का अहसांस हुआ था,

 मैं उनकी गलत नजरों को तब पहचान गयी थी,

 पर शायद तब बहुत देर हो गयी थी,

 मैंने भागने की कोशिश की,

 हाथ पैर भी खूब मारे मैंने,

 पर...पर...मैं खुद को बचा नहीं पायी।


आखिर मेरी गलती क्या थी,

यही ना कि मैं एक लड़की थी।

आखिर क्या करती मैं, बहुत लोग थे वो,

किसी ने मेरे हाथ पकड़े तो किसी ने मेरे पैर।

बेबस थी मैं, लगा रही थी आश कि खुदा करे मेरी खैर।

मेरा दिल रो रहा था, खुदा को पुकार रहा था,


पर शायद उस वक्त मेरा खुदा सो रहा था।

मैं चीख रही थी चिल्ला रही थी,

मुझे उन दरिंदों की हंसी डरा रही थी।

वहां दूर दूर तक मेरी चीख पुकार सुनने वाला कोई नहीं था।


मैं रो-2 कर थक चुकी थी,

अनगिनत आँसुओं के घुट पी चुकी थी,

गला मेरा बैठ गया था मैं हार चुकी थी।

आखिर मेरी गलती क्या थी,

यही ना कि मैं एक लड़की थी।


मेरे हाथ बांधे,मेरे पैर बांधे।

मुझे जबरन शराब पिलाकर, मेरे मुँह में पट्टी बांध दी,

उन दरिंदों ने मेरे शरीर को नौच लिया था।

फिर उन्होंने एक-2 करके कलियुग में,

इंसानियत की क्रूरता का परिचय दिया।

मैं अंदर से दर्द से कर्रा रही थी,

अंत दम तक खुदा को पुकार रही थी।

मुझे अधमरी कर दिया था उन्होंने,

मेरे सपनो को मार दिया था,

मेरे भरोशे को तोड़ दिया था।


आखिर मेरी गलती क्या थी,

यही ना कि मैं एक लड़की थी।


इतने से ही उन दरिंदो का मन ना भरा था,

मेरी कुछ बची हुई सांसो को कफ़न में लपेट कर,

पेट्रोल छिड़कर मुझे जला दिया।

ऐसा करते वक्त उनके हाथ नहीं कांपे थे,

ना ही उनकी आंखों में कोई नमी थी,

क्या उन इंसानी रूपी दरिंदों की यही ज़मीन थी?

सब कहते थे मुझसे की तुम डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं,

पर इसी भगवान के रूप का

अस्त्तित्व तक उन दरिंदो ने मिटा दिया।


आखिर मेरी गलती क्या थी,

यही ना कि मैं एक लड़की थी।

अब मेरा अस्त्तित्व तो मिट गया,

पर यह मेरी दर्दनाक मौत,

मेरे घर वालों को ज़िन्दगी भर के लिए गम दे गयी।

फिरसे इंसानियत पर एक कलंक दे गयी,

ट्विटर के लिए नया ट्रेंडिंग हैशटैग दे गयी,

लोगों के लिए एक नया मुद्दा दे गयी,

पॉलिटिक्स का एक नया कारण बन गई,

मेरी कहानी को निर्भया, अशिफ़ा के साथ जोड़ गयी।


पर..पर.. क्या यह समाज,

यह कानून उन दरिंदों को

वैसी दर्दनाक मौत दे पायेगा ?

या मेरी घर वालों को सालों तक

कोर्ट के चक्र लगाकर तड़पायगा ?

शायद मेरी यही गलती थी,

कि मैं एक लड़की थी।


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