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Dheeraj Srivastava

Tragedy

5.0  

Dheeraj Srivastava

Tragedy

घर का कोना -कोना अम्मा

घर का कोना -कोना अम्मा

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861


अपने घर का हाल देखकर,चुप रहना मत रोना अम्मा ।

सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा ।


खेत और खलिहान बिक गये

इज्जत चाट रही माटी !

अलग अलग चूल्हों में मिलकर

भून रहे सब परिपाटी !


नज़र लगी जैसे इस घर को,या कुछ जादू टोना अम्मा ।

सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा ।


बाँट लिए भैया भाभी ने

बाग बगीचे गलियारे !

अन ब्याही बहना है अब तक

बैठी लज्जा के मारे !


दुख की गठरी इन कंधों पर,जाने कब तक ढोना अम्मा ।

सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।


छोटे की लग गयी नौकरी

दूर शहर में रहता है !

पश्चिम वाली हवा चली जो

संग उसी के बहता है !


सिर्फ रुपैय्या खाता पीता,या फिर चाँदी सोना अम्मा ।

सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।


सिसक रहे हैं बर्तन भाड़े

मेज कुर्सियाँ अलमारी !

जो आँगन में तख्त पड़ा था

उस पर आज चली आरी !


तुम होती तो देख न पाती,यों रिश्तों का खोना अम्मा ।

सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।


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