जिसे रोज तुम पढ़ा करो
जिसे रोज तुम पढ़ा करो
सोच रहा क्या ऐसा लिख दूँ
जिसे रोज तुम पढ़ा करो।
पढ़ पढ़कर तस्वीर हमारी
बस मन ही मन गढ़ा करो।
जूही, चम्पा, लिली, चमेली
तोड़ बिछा दूँ पाँव तले।
या नयनों के दीप जला दूँ
राह तुम्हारी,शाम ढले।
और तोड़कर ला दूँ तारे
बस आँचल में मढ़ा करो।
सौ सौ नजरें आज नेह की
तुमको अर्पण कर जाऊँ।
रच दूँ कहो महावर या फिर
साँस -साँस में भर जाऊँ।
कभी - कभी तो दर्शन देने
बस कोठे पर चढ़ा करो।
लाज ओढ़कर ढूँढ रही है
एक कल्पना, प्यार प्रिये।
छंद सरित अधरों पर रचकर
व्याकुल है मनुहार प्रिये।
जीवन तट पर छूने मुझको
बस लहरों सी बढ़ा करो।