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Dheeraj Srivastava

Others

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Dheeraj Srivastava

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छील रही थी घास

छील रही थी घास

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एक अचम्भा देखा हमने

आज गाँव के पास ।

आसमान से परी उतरकर

छील रही थी घास ।


सुंदरता को देख देवियाँ

रहीं स्वयं को कोस !

श्रम की बूँदें यों माथे पर

ज्यों फूलों पर ओस !


चूड़ी की खन खन सँग उसके

नृत्य करे मधुमास ।

आसमान से परी उतर कर

छील रही थी घास ।


चटक धूप में कोमल काया

दिखे कुंदनी रूप !

धूल सने हाथों से गढ़ती

पावन दृश्य अनूप !


करती जाती कठिन तपस्या

साथ लिए विश्वास ।

आसमान से परी उतर कर

छील रही थी घास ।


डलिया खुरपा हरी धरा पर

छेड़ रहे थे तान !

अंग अंग से छलक रहा था

मेहनत का अभिमान !


साथ हवा के करती जाती

मधुर हास-परिहास ।

आसमान से परी उतरकर

छील रही थी घास ।


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