Dheeraj Srivastava

Tragedy

4.9  

Dheeraj Srivastava

Tragedy

जुगुरी

जुगुरी

1 min
547


भाग रही है बचती बचती घिरी हुई है आग।

देख भयावह स्वप्न रात में अक्सर जाती जाग।


भाग्य छिपा है अँधियारे में

हुए न पीले हाथ।

काट रही है भरी जवानी

भारी मन के साथ।


उस पर रोज खोदता गंदा घर के पीछे काग।

देख भयावह स्वप्न रात में अक्सर जाती जाग।


जब-जब चले मंद पुरवाई

सिसके उसकी प्रीत।

ढूँढ़ निकाला था श्यामू ने

नथुनी में संगीत।


पर सागर में डूब गया है उसका भी अनुराग।

देख भयावह स्वप्न रात में अक्सर जाती जाग।


कैसे भला कली मुस्काये

करते भौंरे तंग।

अपना-अपना राग छेड़ते

लगना चाहें अंग।


ताकें झाँकें कीट पतंगे बिन माली का बाग।

देख भयावह स्वप्न रात में अक्सर जाती जाग।


अगल-बगल की सखियाँ सारी

खेल रही हैं रंग।

पर जीने की खातिर जुगुरी

सोच रही है ढंग।


बरस रहा अँखियों से सावन कैसे गाये फाग ?

देख भयावह स्वप्न रात में अक्सर जाती जाग।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy