बाल मजदूर
बाल मजदूर
जब कोई बालक मजदूर बन जाता है
उफ मासूम बचपन उसका छिन जाता है।
जब अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है
हाँ वो वक्त से पहले बड़ा हो जाता है।
कारखानो में जब औजारों को चलाता है
खिलौने समझ उन्हीं से खुश हो जाता है।
जब बच्चों को जेब खर्ची मिलती ऐश को
वो कमा कमा कर अपना घर चलाता है।
कक्षा जाने की उम्र में वो काम पर जाता है
दूसरे जाते बच्चों को नम ताकता रह जाता है।
पन्नों पे लिखने पढ़ने की हैसियत ना उसकी है
वो तो बस पन्नों के लिफाफे बना बेच आता है।
नाम गुमनाम होता छोटू कह पुकारा जाता है
जरा जरा सी गलती पर वो दुतकारा जाता है।
गालियाँ और धमकी उसके रोज निवाले बनते
उसको चप्पलों थप्पड़ों से लतियाया जाता है।
बालक भांत भांत के नए नए कपड़े पहनते हैं
वो पुराने उतरे पुतरे कपड़ों में जीवन गुजारता है।
खाने को बचा खुचा मिलता कभी वो भी ना
कभी सरकारी नल के मुहँ लगा सो जाता है।
काम करा 500 का 100 का पत्ता थमा देता है
कल से काम पर न आना मालिक बता जाता है।
कच्ची उम्र में पक्की सोच का लबादा ओढ़ते हैं
फिर बिना शिक्षा के वो सब कुछ सीख जाता है।
बाल मजदूर ऐसा होता है।