पत्थर मन
पत्थर मन
देख जरा तू मेरी ओर दिल रो रहा है पर नैना चुप है
एक तू ही तो माँ नही है उसकी वो मेरा भी तो पुत है
दुध तेरा ही नही था उसकी रगो में खुन मेरा भी तो है
क्यो रोती रहती हो पुत्र वियोग मे पल पल हर पल युं
जितना शोक तेरे मन में है उतना ही मेरे मन में भी है
रोक नही सकती खुद को तुम जैसी मजबूत नही हूँ मैं
मर्दो को रोना मना है शायद इसलिए रोते नही हो तुम
कैसे रोक लेते हो खुद को कहाँ से लाए ये हुनर तुम
अगर हम भी रोएगे तो सोचो तुम्हे चुप कोन कराएगा
गुब्बार उठता जब मन में रोते है बैठ के ओने कोने में
तुम्हारा सामना करते है तब प्रसन्न मुख रखते है हम
सबको लगता है हम मर्द है तो रोते नही कभी हम
सच तो है कि तुम्हे संभालने को पत्थर बन जाते हम