पराई
पराई
एक कुल की जाइ मैं
दुजे कुल में ब्याई में
दोनो कुल मेरे अपने है
फिर भी कहाइ पराई मैं
एक मैं ही नहीं सब नारी
कब से यूँ ही जीती आई है
नानी दादी फुफी मौसी
सबने ये रीत निभाई है
जब खुद लिए जीना चाहा
हमपे जग ने अंगुली उठाई है
ये कैसी नारी है देखो भई
अपनों की खुशी नहीं भाई है
नारी कितना ही करदे अपनों का
फिर भी तारीफ कभी नहीं पाई है
क्योंकि वो पराई है हाँ पराई है।