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KUMAR अविनाश

Tragedy

5  

KUMAR अविनाश

Tragedy

सत्ता की बीमारी

सत्ता की बीमारी

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मैं दिल से मजबूर हूँ अपने और वो दुनियादारी से  

दिल - दुनिया से जूझ रहे हैं दोनों बारी - बारी से 


रिश्तों के इस खेल में इक दिन दोनों की ही हार हुई  

वो अपनी  चालों से हारा , मैं अपनी दिलदारी से  


दिल से बाहर कर के मुझको अच्छा सा घर सौंप दिया  

उसने अपना  फ़र्ज़  निभाया कितनी ज़िम्मेदारी से  


मेरा उसका रिश्ता जैसे  ताला किसी ख़ज़ाने का

जिसको देखो काट रहा है अपनी-अपनी आरी से  


चुपके - चुपके उसने मेरे  सारे  रिश्ते बेच  दिए  

जैसे उसका रिश्ता हो कुछ रिश्तों के व्यापारी से 


चोरी - चोरी  औने - पौने सारे  रिश्ते बेच दिए  

ख़ूब कमाई की है उसने ख़ालिस चोर बाज़ारी से


देखो युवा अब हार गया इस बढ़ती बेरोजगारी से

देश का हो गया बुरा हाल इस सत्ता की बीमारी से।


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