वो पहली खबर...
वो पहली खबर...
सुबह की चाय की प्याली...
और वो अख़बार का पन्ना...
वही पहला सफ़ा जिसे अक्सर...
मैं यूँ ही छोड़ देता हूँ...
मगर क्यों आज न छूटा...
या शायद आज ही, आँखें खुली...
किसी की बंद आँखों से..
बड़ी हैरत में हूँ खुद भी...
बड़ा शर्मिंदा हूँ खुद भी...
किसी मासूम बच्चे की बरहना लाश
का फोटो छपा था..
न थे माँ-बाप उसके...
न ही कुछ घर का पता था...
एक कमीज थी शायद
किसी हफ्ते के बाजार की...
जिस्म पे उस पे...
और एक पतलून थी मैली सी..
जो मैंने ग़ौर से देखा तो
कुछ वाकिफ लगा मुझको...
वही तो था...हाँ वही लड़का..
जो सिग्नल पर खड़ा...
अख़बार देता था..
रूपए दो रूपए
मज़दूरी एक अख़बार की..
के प्याली छूट न जाये
बड़ा झटका लगा मुझको...
चश्मे को ठीक कर के देखा...
हाँ, ये वही था
जो कल शाम मेरे पास आया था...
कि साहिब ले लो न अख़बार..
बस दो रूपए का है..
न दी मैंने तवज्जो कुछ...
देता भी क्यों..
क्या ठेकेदार था उसका...
उसने फिर कहा...
ले लो न साहिब..
कि सुबह से कुछ नहीं खाया...
मैं कुछ कहता के इससे पहले ही...
एक शख्स ने उसको...
वही साथ में ट्रैफिक में..
बकी एक गन्दी सी गाली
दिखाया उसको थप्पड़ भी...
वो कोई 10 बरस का मैला सा वजूद..
सहम गया.. ठिठक कर दूर जा बैठा...
कि नवंबर है तो शामें ठंडी हैं..
ठिठुरता था वो जैसे..
आँखों में भी खालीपन सा था...
तभी बत्ती हरी हुई
और मैंने राह ली अपनी..
और चंद लम्हों में ही
वो मुझमे कहीं ना था..
और अब...
वही अख़बार वाला लड़का....
खबर बनके.. पहले सफ़े पर है...
किसी बेकाबू ट्रक ने उसको..
अनदेखा किया और...
फिर कुचल डाला...
न जाने कौन था...
हिन्दू था या मुस्लमान था..
दफन होगा या जलाएंगे उसे...
मगर जीते जी क्या सोचा था उसने...
के बाद ए मौत उसको..
जगह अखबार देगा...
ज़माना जीने न देगा ...
मगर इज़्ज़त से उसको मार देगा....
चाय, ख़त्म हुई...
कुछ कड़वी सी लगी...
शायद शक्कर को भी
अफ़सोस है कुछ...
सुबह रौनक से ख़ाली...
बहुत खामोश है कुछ...
