मदहोश
मदहोश
ये मंदिर, मस्जिद का कह कर
जो हमको लड़ना चाहते हैं
ये तुझको मिटाना चाहते हैं
ये मुझको मिटाना चाहते है
एक धागा प्रेम का जो हम में
सदियों से रहा ताक़त बनकर
नफरत की आँच बढ़ाकर ये
वो धागा जलाना चाहते हैं
के रंग लहू का एक ही है
वो तेरा हो, या मेरा हो
गद्दी के प्यासे सौदागर
बस लहू बहाना चाहते हैं
तेरे घर में भी बच्चे हैं
मुझको भी फ़िक्र है रोटी की
ये ज़ालिम हवस के चूल्हे में
बस हमको जलाना चाहते हैं
न झूठे जोश की आंधी में
तू होश का दामन छोड़ कभी
झूठी भक्ति के प्यालों से
मदहोश बनाना चाहते हैं
जो दिल में था, नाज़िम ने लिखा
अब तेरे दिल की तू जाने
के किसको बनाने के खातिर
हम किसको मिटाना चाहते हैं।