सफ़ेद रंग तिरंगे का
सफ़ेद रंग तिरंगे का
" खुद को अब आईने में देखना क्या
खुद को अब तोलना क्या,
खुद से अब बोलना क्या,
कोई पहचान नहीं ,
न कोई वजूद मेरा
सिर्फ एक भीड़ है,
और भीड़ का हिस्सा हूँ मैं।।।
क़दीम मुल्क की अवाम का किस्सा हूँ मैं।।।
हाँ ,
मैं सफ़ेद रंग हूँ तिरंगे का
यक़ीनन मैं सफ़ेद रंग हूँ तिरंगे का
सपाट सा, खामोश सा
बेलुत्फ दरमियां में कहीं
ज़ाफ़रान और सब्ज़ के रंगों में।।
मैं ही हूँ वो अहमक
जिसके लहू से तामीर है
ये जम्हूरियत के बुर्ज'
गुम्बद और तमाम सुतून
मैं ही वो अहमक हूँ
जो तमाम क़ानूनों की
जंजीरों में क़ैद हूँ
मैं ही हूँ जिसको नहीं फिर भी सुकून।।
मेरी ही अर्थियां हिंन्दू हैं
और मेरी ही मैय्यतें मुस्लमान
मेरा ही खून है सामान ए फ़रोख़्त
मेरी कमज़रफ़ी सियासत की दुकान
यकीनन मैं सफ़ेद रंग हूँ तिरंगे का।।
अमन का पैगाम हूँ मैं
या बुज़दिली की पहचान हूँ मैं
या तवाज़ुन हूँ
सियासत के ज़र्द और सब्ज़ रंगों में।।।
मैं सरहद की निगेहबानी से
खेतों के पानी तक हूँ
मज़दूर के पसीने में हूँ
तो तालीमी इदारों की
उभरती जवानी तक हूँ।।।।।
मैं नन्हें बच्चों की किताबों में हूँ
तो कहीं रंगीन रातों की शराबों में हूँ।।।
सियासत के सख्त पाये तले
पिस रहा हूँ कहीं।।
एक ज़ख्म बनके,
रिस रहा हूँ कहीं ,
झूठे वादे हैं सभी
झूठे हैं सभी चेहरे
किसी को फ़र्क़ नहीं
किसी पे हर्फ़ नहीं
के किस तरह से
खुद को संभाला मैंने
बस एक गवाह हूँ मैं
इस रेंगती हुई भीड़ का
जो बड़ी नादाँ है,
हर एक बार भूल जाती है
पेट की भूख, अपने दर्द , अपने दुःख
और बढ़ जाती है इंतेखाब में
कभी ज़ात के नाम पे
तो कभी मज़हब के नाम पे
मजनूँ ग़ुलामों की एक फ़ौज
एक उन्माद है ये
ज़हन से कुंद, जाहिल है,
कहने को आज़ाद है ये ,
बस यही एक मेरी गुज़ारिश है
अब भी है वक़्त जाग जाओ ज़रा
अपनी ताक़त को थोड़ा पहचानो
अपने इस हक़ का इस्तेमाल करो
एक हो जाओ तक़ाज़ा है यही।।
हर एक शख्स इरादा कर ले
खुद से वादा कर ले
न चुनेंगे किसी उन्मादी को
न चुनेंगे किसी फसादी को
फिर से हम एक बार दिखा देंगे अब
के हम बचा सकते हैं अपनी आज़ादी को, "
