STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

आशाओं का दीप

आशाओं का दीप

1 min
195

माना कि चहुँओर 

घना अँधेरा है,

मन में दहशत, 

खौफ का पहरा है,

हर ओर एक अजीब सी खामोशी है

दूर दूर तक नहीं दिखती खुशी है।


आओ मिलकर विश्वास का 

फिर से भाव जगायें,

उम्मीदों के साये में 

आशाओं का दीप जलाएं।


हर मन में उमंग भरें

बुझते उम्मीदों के दीपक में

विश्वास का तेल भरें

हर किसी की चौखट पर

आशाओं का नया दीप जलाएं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract