जिंदगी
जिंदगी
माँ की जिंदगी
कभी चाँदनी रात तो कभी
तपती दोपहरी लगे
जिंदगी के हर मुकाम को
वो हँसकर सहे
कभी तो सुबह की ठंडक
कभी रात का अँधेरा
हर पल उसने बड़ी ही
संत्वना से है बिताया
सबको खाना खिलाकर
जो बचा वो खाया
कभी ये जिंदगी
खुशनुमा बहार बन जाती
कभी ये जिंदगी
हलकी सी फुहार बन जाती
कभी दर्द को समेटे
मुस्कुराती रहती
कभी ये जिंदगी
अपने लिए न सोचती
अपने ख्वाबों को छोड़कर
सबके ख्वाबों का
ध्यान वो रखती
हाँ वो जिंदगी माँ है
जो ख़ुशी ही ख़ुशी देती
हर -पल हर -पल।
