गहरा रहस्य
गहरा रहस्य


न जाने कितने रहस्य छिपे हैं
पृथ्वी की इस कोख में,
सदियाँ बीत गईं इस रहस्य के
संशय को दूर करने में,
सबको जिज्ञासा सबकुछ जानने की,
कब, क्या,कैसे?
किंतु परंतु की इस दौड़ में
न जाने क्या-क्या बदल गया
रहस्य को ढूँढने में
क्या सम्भला और क्या उजड़ गया?
न जाने कितने ही पहाड़ों को
काटकर रास्ता बना दिया
उफान- सी बहती नदियों में
किसी ने मैदान ढूंढ लिया
विनाश हुआ नदियों, पहाड़ों का
और बहुत कुछ बदल गया
इतना विनाश हुआ कि
लगता आज जंगल ही खो गया
न जाने कितने रहस्य छिपे हैं
पृथ्वी की इस कोख में,
सदियाँ बीत गईं इस रहस्य के
संशय को दूर करने में,
चहचहाती वो चिड़िया,
कोयल
जाने कहाँ विलुप्त हो गई
जिसकी चहचहाट सुन उठा करते थे
आज वो चुप हो गई
आज भी न समझे
आखिर क्या रहस्य है इस प्रकृति का?
कभी हंसती तो कभी पल भर में
सब कुछ ढेर कर देती है
न जाने कितने रहस्य छिपे हैं
पृथ्वी की इस कोख में,
सदियाँ बीत गईं इस रहस्य के
संशय को दूर करने में,
धरती और आकाश के बीच
ब्रह्माण्ड का रहस्य गहराया
कली से फूल बनना
उसकी सोंधी खुशबू का बिखराव
समुद्र में उत्साह से दौड़ लगाती
सागर की हलचल लहरें
बूँद का रहस्य,हवाओं का रहस्य
छिपे हैं कई रहस्य यहाँ
न जाने कितने रहस्य छिपे हैं
पृथ्वी की इस कोख में,
सदियाँ बीत गईं इस रहस्य के
संशय को दूर करने में।