अपने-अपने वक्त की बात
अपने-अपने वक्त की बात
यह तो अपने-अपने वक्त की बात है
कभी राजा भी बन जाता गुलाम है
घमंड किस बात का करता तू प्यारे,
श्मसान में सर्व राख होती समान है
दौलत नशे में मत भूल औकात है
वक्त जब-जब आता कोई खराब है
अच्छे-अच्छे जमीन पे आ जाते है,
ज़माने के ऊंचे-ऊंचे आफताब है
सबको समझ तू फूल-गुलाब है
सबमे कुछ न कुछ होती बात है
सबमे छिपी कोई न कोई आग है
यूँही न बनता कोई मनु किताब है
यह तो अपने-अपने वक्त की बात है
कभी राजा भी बन जाता गुलाम है
वक्त ही किसी को यहां बनाता है,
वक्त ही किसी को यहां बिगाड़ता है,
वक्त के अधीन हम सब इंसान है
वक्त ही हम सबके राजा राम है
वक्त ही सच में होता भगवान है
वक्त ही बनाता सुबह और शाम है
टूटते उनके ही साखी यहां ख्वाब है
उड़ाते जो किसी का भी मजाक है
वक्त ही बनाता राजा और आम है
वक्त को मत समझ छोटा नाम है
सबकी क़द्र करना सीख ले,साखी
एकदिन समय जरूर देता ईनाम है
उनका चलता सिक्का लाजवाब है
जो वक्त का हरपल करते आदाब है
यह तो अपने-अपने वक्त की बात है
कभी राजा भी बन जाता गुलाम है
तू नम्र होकर जिंदगी जीना सीख ले,
इससे शत्रु भी मित्र बन जाते तमाम है
वक्त के अनुसार जो चलते इंसान है
वक्त उनको करता सदा ही सलाम है
वर्तमान को बनाता अपना मुकाम है
वक्त से होती साखी उनकी पहचान है।
