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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

"शांत और स्थिर रात"

"शांत और स्थिर रात"

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शान्त और स्थिर सी है,यह रात
उमड़ रहे है,कई सारे ख़्यालात
क्या करूँ और क्या नही करूं?
समझ न आ रही है,कोई बात
आलस्य लगा रहा है,आवाज
सो,नींद में खो सुख के साथ
दूजी ओर लक्ष्य कहता,बेबाक
आ जा रे,मन हरकतों से बाज
कर ले तू परिश्रम से मुलाकात
फिर न आएगी दोबारा यह रात
कर्मवीर ही सुनते,रात्रि की पुकार
वो ही करते है,रात्रि का इंतजार
जो अपने लक्ष्य के प्रति वफादार
वो ही करते रात्रि में कर्म व्यवहार
इसके उलट भोगी का इकरार
वो रात्रि को खोता,अपनी बहार
रात्रि से कर ले,तू आज संवाद
उसे बता अपने हृदय के जज्बात
छोड़ दे,तू उजालों को करना याद
खो जा,आज तू अंधेरे में चुपचाप
ढूंढ ले आज,तू अंधेरो का चराग
जिसमें छिपा,शांत,स्थिर प्रकाश
जग ने ठुकराया,तुझे बिना बात
तू आज दुनिया को मार दे,लात
विरोधियों को कैसे देनी है,मात
चुप होकर,रात्रि से सीख,वो बात
शान्त और स्थिर सी है,यह रात
कर ले आज तू,खुद से मुलाकात
इस रात क्या,साखी तुझे हर रात
करना कर्म प्रतिक्षण अपने हाथ
थोड़े परिश्रम से न होता अमृतपान
पूर्व सहना पड़ता,तानों का विषपान
नित चलने से मिलता,मंजिल स्थान
लक्ष्य हेतु भूलनी होती है,हर थकान
कैसे झुकाना है ?,तुझे यह जहान
निशा रानी से ले,ले,तू यह वरदान
कर्म कर लगा दे,अपनी जी जान
तू खुद ही साखी तेरा भगवान
जो रात्रि को बनाता,भोर जुबान
वो अंधेरेमें चमकता प्रकाश समान
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"





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