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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Inspirational

"दुआ-बद्दुआ,

"दुआ-बद्दुआ,

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ये दुआओ का ही तो दम है
शूलों पर भी खिल रहे हम है
जिनके पास न हो,शबनम है
उन्हें फूल भी देते जख्म है
मां-बाप दुआओं,का कर्म है
हो रही,रक्षा कदम-कदम है
इनकी दुआओं का यह दम है
सोई हुई,किस्मत जग गई है
बिन पर,नभ में उड़ रहे,हम है
मत दुःखाओं किसी का दिल,
इसमें रहता,खुदा हरदम है
बद्दुओं में भी होता,दम है
मत दो,तुम किसी को गम है
यह न होती,किसी से कम है
जितना हो,तुम बद्दुआ से बचो,
बद्दुआ तो एक परमाणु बम है
दिल से निकली दुआ व बद्दुआ
दोनों मे होता बड़ा ही दम है
दुआ जहां करती,सृजन कर्म है
बद्दुआ वहां करती, विध्वंस है
दुआ लेने का करें,बस उद्यम है
दुआएं ही होती,साखी उत्तम है
दुआ,करीब प्रकाश पुंज परम् है
दुआओं से मिटता जीवन तम है
किसी की दुआ ले,बद्दुआ नही
जख्म न दे,बस लगाएं,मरहम है
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"


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