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GHANSHYAM BADAL

Abstract

4.5  

GHANSHYAM BADAL

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मुंह फेर कर गया !

मुंह फेर कर गया !

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आँखें तरेर कर गया , वह मुंह फेर कर गया ,

यूं जिंदगी के शेर को , बेटा वह ढेर कर गया ।


रात भर खांसती रही माँ , दालान में पड़ी रही ,

चढ़ता हुआ सूरज , सब कुछ अंधेर कर गया ।


बाप के लिए वक्त , बचता ही नहीं आजकल,

समझने में उसे वक्त से, मैं शायद देर कर गया ।


अर्थी फूलों से लदी , जनाजा भी आबाद था ,

मरा नहीं मारा गया वह,यह मौन टेर कर गया ।


औलाद से अपनी प्यार बहुत , है मेरी औलाद को,

हिस्सा मेरा ही कोई , बताओ क्यों सकेर गया ।


सुख के 'बादल' सूख कर , बस झुर्रियां देते गए ,

हां ,मजबूरियां मेरी तरफ , हर कोई हेर कर गया ।



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