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कुमार जितेंद्र

Abstract

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कुमार जितेंद्र

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लॉक डाउन

लॉक डाउन

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हर गरीब, हर लाचार के

खाने-पीने, रहने का

पुख़्ता इंतज़ाम है,

कई अमीर, समर्थ

उनके हिस्से की,


दावत उड़ा रहे हैं

खैरात रसद बांटना,

बड़ा राजस्व घाटा

जानकारों के समूह ने,


सुझाव दिये हैं

भले सड़े हों आधे,

काग़ज में पूरे हैं।

आम अर्दली को वेतन,

मिलता है कौड़ियों में

ड्यूटी पे मर जाएं,


शहीद माने जायेंगे

है फ़रमान, श्रीमान्

एक करोड़ दिलाएंगे।

जीवनदायक, जीवनरक्षक


तैनात तत्पर निरंतर,

उनको घरों से

मालिक मकान भगा रहे हैं

कोई पत्थर चला रहा है

कई फूल गिरा रहे हैं।


भूख से, भय से

घर कूच कर गए

अपनी जिंदगी बचाने,

नैया पटरी पर लाने

सुबह हुई तो सपने,

थे पटरियों पे बिखरे


एहतियात के सख्त,

दिशा -निर्देश प्रभावी

बच्चे विशेष आग्रह पर,

भेजे जा रहे हैं

तीस की जगह, मजबूरी है

साठ लादे जा रहे।


दान का आह्वान,

किया है प्रधान ने

लोग हैसियत से ज्यादा,

प्रदान कर रहे हैं

राहत का बड़ा ऐलान,

सावधान !


गिद्धों के झुंड,

नोचने की फ़िराक में हैं।

सत्ता को मद से रोकना,

विपक्ष का हक़ है

चाहे लिया हो निर्णय,


आम आदमी के पक्ष में

फ़िक्र ये भी है, सारा तमगा

सरकार ना ले जाये।


प्रवासियों की एकसाथ,

घरवापसी है मुश्किल

श्रमिक एक्सप्रेस में,

जगह की कश्मकश है

वो पूछते हैं लॉकडाउन में,

समाधान क्या है ?

मत भूलिए हुज़ूर,

लगाम आपके हाथ में है।


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