कल्कि अवतार की बारी है
कल्कि अवतार की बारी है
प्रभु तेरे कलयुग की लीला
अद्भूत अगण निराली है
ज्ञानी का कोई मोल नहीं
मूढ़ से मिलने मारामारी है
काबिल के कारोबार ठप
चतुर की दुकानदारी है
शिक्षित बाहें बांध खड़े
और चलती ठेपामारी है
कर्मठ अपने आप लगे
शेष को रोकना जारी है
विशेषों से काम लें कैसे
एजेंडा सरकारी है
हाथ जोड़ घर-घर में घूमें
चुनावी लाचारी है
जीत गये तो घूमो पीछे
दरस ना मिलने वाली है
मर्यादा की सीमा हर दिन
जबरन तोड़ी जाती है
अपने हैं तो सॉरी ना बोलें
ग़ैरों पे मुकदमा सारी है
खूंखार खुलेआम सड़क पर
गाय की पहरेदारी है
लुटेरे परदेस में मस्त
भीड़ की कड़ी निगरानी है
पुत्र की हर इच्छापूर्ति
पिता की जिम्मेवारी है
जिंदा रहते भार नामुमकिन
याद में लंगर भारी है
जन्मजात रिश्तों की गाड़ी
कहाँ सदा चल पाती है
गठबंधन के बाद के नाते
लंबी चलने वाली है
मेधावी को अंक मिले कम
टॉपर बना अनाड़ी है
बेईमान ईमानी सबसे
भोला हीं भ्रष्टाचारी है
हाशिये पर खरा जो बोले
हावी चाटुकारी है
ढोंगी के घर लोग अनेकों
छद्म वेश दुराचारी है
श्री चरनन की पादुका
जहां भरत लिए सिर नाई रे
आज वहीं भाई का हिस्सा
हड़पे सगा हीं भाई है
हे गिरिधर ,मोहन ,बंशीधर
पाप की फ़िर बरियारी है
देवदत तेरी बाट निहारे
कल्कि अवतार की बारी है...!