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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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हमारा मन

हमारा मन

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समय के साथ

सब कुछ बदलता जा रहा है,

बीता हुआ कल

इतिहास बन रहा है।

पर कुछ चीजें आज भी

न बदली हैं,

जैसे अपने स्वभाव को

हमेशा के लिए गढ़ ली हैं।

हमारा मन भी कुछ ऐसा ही है

जो गिरगिट सा रंग नहीं बदलता है,

जैसा शरीर ग्रहण करता अन्न है

उसी के अनुरूप ढल जाता मन है।

न कोई शिकवा

न ही शिकायत है

हमारी ग्रहणीयता का

यही तो परिचायक है।


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