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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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झूला

झूला

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सावन मास फिर से याद दिलाया,

सावन के झूलों ने हमें है बुलाया।


ऊँची ऊँची डाली तक पेंगे लगाती,

मानो नभ को है छूकर वापस आती,

मन आतुर बड़ा ही हरषाया,

पड़ती फुहार ने तन मन है भिंगाया।

सावन के झूलों ने हमें है बुलाया...


निकल पड़ी घर से सखी सहेलियां,

दिखे हैं आतुर बाजे पैजनियाँ,

बागों में हैं लगे झूले पड़ने

झूलने को आतुर सभी गोरियाँ

सावन के झूलों ने हमें है बुलाया...


बचपन की याद दिलाता है सावन,

झूलों के लिए मन ललचाता सावन,

राधा किशन की याद दिलाता सावन,

बृज की गोपियों की याद दिलाता सावन।

सावन के झूलों ने हमें है बुलाया....


अबकि सावन झूला चलो डाले,

बैर मन को चलो सब मिटा ले,

झूलों के संग मन आनंदित हो जाये,

मिलजुल सब कजरी गा ले।

सावन के झूलों ने हमें है बुलाया....


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