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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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नकाब

नकाब

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एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए हुए हैं,

असली चेहरे को परतों के नीचे छिपाए हुए लोग हैं,

कौन क्या है, कैसा है परखना है मुश्किल,

इस तरह से जमाने को दिखाए हुए हैं।


पल पल में वह अपना रूप बदलते हैं,

कुछ हमसे कुछ तुमसे अलग रहते हैं,

धोखे में रखकर उलझाते हैं कुछ इस तरह,

असली चेहरा नकाबों में छुपाते हैं।


ऊपर से मीठी मीठी बातें करते हैं,

मन में नफ़रत का जहर भरते हैं,

न जाने कब अपना रूप बदल लें,

इस बात से सदा ही वह अनजान रखते हैं।


अपनेपन का झूठा वह दिखावा करते हैं,

इस तरह से वह अपने सबको उलझाया करते हैं,

मित्र बनकर शत्रुता सदा ही वह निभाते हैं,

इस तरह नकाबों में स्वयं को छिपाया करते हैं।


मतलब हो तो दिखाते सदा ही यारी है,

मतलब के बाद पलटने की रहती तैयारी है,

मौकापरस्त समझो या मतलब परस्त मानो,

नकाबों से देखना दुनिया सदा ही हारी है।


 सीधे सरल सच्चे होने का नकाब लगाते हैं,

मासूमियत के दिखावे से स्वयं को बचाते है,

नकाबों के परत दर परत में स्वयं को छुपाकर,

अपनी असलियत सदा ही दुनिया से छुपाते हैं



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