मेरी माँ
मेरी माँ
मुश्किल कितनी भी आये हो हार नही मानती थी,
हर मुश्किल में मुझे मजबूती से संभालती थी,
थी रात भर मेरे दर्द में जगती और फिक्र करती,
फिर सुबह चुस्ती के साथ जिम्मेदारियां संभालती थी।
मेरे लिए जिसने तज दिये अपने जीवन की खुशी,
प्रयास करती रही कि कैसे मेरे होठों पर हो हँसी,
मुझको स्वावलंबी बनाने का बीड़ा उसने उठाया,
जब मैं दर्द में होती तो देखती उसके चेहरे पर बेबसी।
नही मुझे बेबसी से जीवन में रहना सिखाया,
स्वाभिमान से जिसने मुझको है रहना सिखाया,
जो हो गलत उसके प्रति बन जाऊं सदा ही मुखर,
जमाने की आँखों में आँख डालकर चलना सिखाया।
सदा ही मैं ऋणी हूँ तुम्हारी इस जीवन के लिए,
मेरे इस दृढ़संकल्पित इस चंचल मन के लिए,
आज जो भी हूँ जैसी भी हूँ तुम्हारी मार्गदर्शन है,
मेरा यह जीवन तेरी खुशी के लिए सदैव अर्पण है।