यह कविता मासूम बचपने को दर्शाती है... यह कविता मासूम बचपने को दर्शाती है...
तब अच्छा खाना क्यों नहीं और अब ये हलुआ पूरी क्यों। तब अच्छा खाना क्यों नहीं और अब ये हलुआ पूरी क्यों।
क्या घर की लाडली स्कूल भी न जाये, क्या तेरी बेटी भी यूँ ही शिकार हो जाये। क्या घर की लाडली स्कूल भी न जाये, क्या तेरी बेटी भी यूँ ही शिकार हो जाये।
तो आखिर गिरने से इतना क्यों डरते हो, गिरे हुए का क्यों अपमान करते हो मुझे देखो मेरा तो अस्तित... तो आखिर गिरने से इतना क्यों डरते हो, गिरे हुए का क्यों अपमान करते हो मुझे...
ज़िंदगी कितना कुछ सिखा जाती है बेवजह की ख़ुशी भुला जाती है जाने कब हमें बड़ा कर जाती है ज़िंदगी कितना कुछ सिखा जाती है बेवजह की ख़ुशी भुला जाती है जाने कब हमें बड़ा ...
नन्हे कोमल हाथों से बर्तन चमकाता है वो कारखानों में भारी बोझ उठाता है वो बड़े साहब लोगो के जूते... नन्हे कोमल हाथों से बर्तन चमकाता है वो कारखानों में भारी बोझ उठाता है वो ब...