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Manu Sweta

Tragedy

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Manu Sweta

Tragedy

श्राद्ध

श्राद्ध

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आज घर पुरियों की खुशबू से

महक रहा है

ऐसा लगता है कि घर मे कोई

शायद आ रहा है


माँ खाना बनाने में व्यस्त है

और पिताजी आसान लगा रहे हैं

जैसे जैसे हलवे की खुशबू बढ़ती जाती

मेरे पेट की आग भी बढ़ती जाती


लेकिन रोज़ माँ खाने पर मुझे बुलाती है

आज जैसे मुझे भूली जाती है

इधर दादी भी रोती जा रही है

ये बात कुछ समझ नही आ रही है


तब मैंने दादी से पूछा रो क्यो रही हो

किस दुख के लिए आंसू बहा रही हो

तब दादी ने प्यार से मुझे बुलाया

और पास बैठा तब समझाया


कि आज तेरे दादा का श्राद्ध है

इसीलिये बनाया ये खाद्य पदार्थ है

आज ब्राह्मण कहना खाएंगे

तो तेरे दादाजी भी ऊपर खाना खाएंगे


मैंने बड़ी मासूमियत से ये पूछा

कि जब दादाजी जिंदा थे

तब अच्छा खाना क्यों नहीं

और अब ये हलुआ पूरी क्यों।


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