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Manu Sweta

Others

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Manu Sweta

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ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

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हर कतरे में कायनात ढूंढती हूँ

जिंदगी मैं तुझमे ख़ुशी ढूंढती हूँ।

जर्रे जर्रे में फैली है जो तेरी खुशबू

उन फूलो की मैं महक ढूँढती हूँ।

वो माँ का लोरी सुनाकर सुलाना मुझे

आज मैं इन आँखों में नींद ढूँढती हूँ।

जलती हुई रेत पर दौड़ जाना दूर तक

प्यास की मैं मरीचिका ढूँढती हूँ।

आज छाया है घना अँधेरा चहुँ ओर

मै दीपक की लौ में प्रकाश ढूँढती हूँ।

हर तरफ कैसा सूनापन है आज

मै पतझड़ में हरियाली ढूँढती हूँ।

अजीब सी ज़िद है ग़ालिब मेरी

मै सहरा में समंदर ढूँढती हूँ।

इन आँखों में बसा ही नहीं कोई

अब तकमै उस राहगुज़र को सरेराह ढूढती हूँ।

कुछ तो निशाँ दे क़दमो के अपने ज़िन्दगी

आज भी तेरे क़दमो के निशाँ ढूँढती हूँ।


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