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Manu Sweta

Tragedy

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Manu Sweta

Tragedy

हे खग

हे खग

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तुम नभ के अधिकारी तुम पर, जाऊँ मैं बलिहारी।

प्रियतम मेरे पास नहीं प्राणों का अहसास नहीं

मैं ढूंढ फिरी चहुँ ओर जाने कौन दिशा गए चितचोर ???

मैं सोलह श्रृंगार किये बैठी हूँ उन पर कुछ मन में ऐंठी हूँ

मेरी दुविधा समझे कौन?? उनको मना कर लाये कौन????,

तुम तो हो भगवान के डाकिये दसो दिशाओं को हो----- जानते

बस मेरा इतना काम तो करना मुझ विरहणी का संदेशा उन तक पहुँचाना।।


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