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Piyush Pant

Abstract Romance Tragedy

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Piyush Pant

Abstract Romance Tragedy

क्या था जीवन, कहाँ आ गया?

क्या था जीवन, कहाँ आ गया?

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तुमने कुछ उपहार दिए थे,

स्मृतियों के हार दिए थे,

हृदय दिया कुछ वचन दिए थे,

प्रीत के कोमल सुमन दिए थे!

 

पर स्मृतियों की भाषा में,

मौन मुझे स्वीकार नहीं है,

प्रीत के सुमनो में मेरे

स्वप्नों का वो संसार नहीं है!

 

समय के इस पहलू में भी अब

जीवन का आधार नहीं है,

दोष तुम्हारा नहीं प्राण,

इसमें मेरी भी हार नहीं है!

 

परिस्थति के चक्र को कोई

कभी नहीं समझ पाता है,

दृश्य बदल जाता है तब तक,

ज्ञान हमें जब तक आता है!

 

अपने ही हठ से हूं दंडित,

विश्वासों से हारा हूं,

पथ विस्मृत अस्तित्व खंडित,

मानो टूटा तारा हूं!

 

तुमसे कभी किया था मैंने,

जन्मो का स्वप्निल गठबंधन,

पर स्वप्नो के इस मधुबन में,

हृदय मेरा करता अब क्रंदन!

 

सोचा था स्वप्नों से तेरे,

स्वप्नों का होगा आलिंगन,

पर स्वप्नों की राख समेटे

अश्रुपान करता है अब मन!

कहां गया नयनों का दर्पण

कहां करूं भावों को अर्पण

कहां प्रतीक्षा करूं सुखों की

कैसे करूं दुखों को तर्पण!

 

क्षण भर का जो साथ मिला था,

जीवन का आभास मिला था,

सूने उपवन की क्यारी में,

ज्यों जूही सा फूल खिला था!

 

शुष्क कठोर धरा पर मेरी,

आषाढ़ की बदरी छाई,

कुसुमित शाखा सी नतमस्तक,

निवेदिता जब तुम थी आई!

 

मैंने भी ये मान लिया था,

स्वप्नों को सम्मान दिया था।

हृदय का तुमको दान दिया था,

जीवन तुममें जान लिया था!

 

मेरी श्वासो ने भी उस क्षण,

पास तेरे विश्राम किया था,

हृदय के नियमित स्पंदन ने,

बस तेरा ही नाम लिया था!

 

पर जीवन स्वप्नों का कोमल,

नहीं बिछौना, ज्ञान नहीं था,

स्वप्न नहीं था दुर्गम पथ,

पर यथार्थ था,ये भान नहीं था!

 

क्या सपने थे, क्या आशा थी,

भोले उन कोमल अधरों की,

जाने वो क्या भाषा थी,

मेरी उस कोमल बगिया में,

क्यों कोहरा सा छा गया,

क्या था जीवन, कहाँ आ गया?

 

इतने पर भी नहीं रुकी थी,

क्रूर समय की ललित कलाएं,

खड़ी थी अब भी सीना ताने,

जीवन पथ पर कई बलाएं!

 

सोया था मैं अंधकार में,

गहन निशा को ढाप लिया था,

जीवन को अभिशाप था माना,

और निरर्थक जान लिया था!

 

अंधकार के उस गहवर से,

एक किरण ने मुझे जगाया,

फिर कोमल स्पर्श किसी का,

हृदय में कोलाहल ले आया!

 

स्वप्न जगे, आशाएं बांधी,

तुममें किरण उषा की पायी,

नैनो को नवज्योति दिलाने,

फिर कोई मृगनयनी आई!

 

नयनों की उस ज्योति के पथ पर,

सूत्र पुराने रोक रहे थे,

उस प्रकाश में घुल जाता,

पर पिछले साये टोक रहे थे!

 

सूत्र पुराने तोड़ चला तब,

छोड़ चला सब पिछले साये,

तुम्हें नई सृष्टि रच कर,

फिर तुमको लेकर गीत बनाए!

 

तुमने कांधों पर सर रखकर

जब जब दो अश्रु छलकाए

तब तब ये अस्तित्व था पिघला

पिघले सारे अहम के साये!

 

उस अश्रु की एक बूंद में,

हृदय को मैंने बहा दिया था,

अपने ही हाथों से अपने,

बीते कल को जला दिया था!

 

उस मृगनयनी की आंखों में,

पढ़ी ना जाने कौन सी भाषा,

एक कल्पना से, एक भ्रम से,

तत्क्षण बंधती गई एक आशा!

 

अब मैं हर क्षण सब कुछ खोकर,

भ्रम की आंधी झेल रहा था,

भ्रमित कल्पना के आंगन में,

अब मैं हर क्षण खेल रहा था!

 

क्रूर समय के चक्र ने किंतु

यहां भी शक्ति दिखलाई,

आने वाले कल में फिर से,

अंधी निशा नज़र आई!

 

जिसके लिए थी दुनिया छोड़ी

वो अब मुझको छोड़ चुका था,

वो विश्वास का एक धागा,

हृदय में फिर से तोड़ चुका था!

 

फिर से मेरे जीवन पथ पर,

गहन निशा थी, अंधियारा था,

ना आकाश, प्रकाश था,&

nbsp;बस,

अब एक भयावह कारा था!

 

क्या सपने थे, क्या आशा थी,

भोले उन कोमल अधरों की,

जाने वो क्या भाषा थी,

मेरी उस कोमल बगिया में,

क्यों कोहरा सा छा गया,

क्या था जीवन, कहाँ आ गया?

 मेरे प्राणों का उपवन सब,

सुख गया था, झूलस गया था,

टूट गई गई थी स्वप्निल माला,

एक एक मोती बिखर गया था!

 

मैं फिर से अपने इस खंडित,

जीवन पथ को कोस रहा था,

हर पल सोच रहा था ये कि,

अब तक मैं क्या सोच रहा था!

 

दिन का सूरज चुभता था,

और रातें सचमुच काली थी

आशाओं का ठूंठ था अब,

और खुशियाँ सूखी डाली थी!

 

तभी मुझे छू कर निकली,

वो शीतल कोमल पुरवाई,

लगा मुझे आकाश में मेरे,

फ़िर से कोई बदरी छायी!

 

देख रहा हूँ आस लगाये,

बादल ही है या भ्रम मेरा,

या फ़िर कोयले दाल पे मेरी,

सचमुच का बन रही बसेरा!

 

पर सच मानो या ना मानो,

कुछ बूदे फिर से आई है,

कुछ कलियाँ भी फूट पड़ी हैं,

और कुछ डाले हर्षायी हैं!

 

जीवन के अंधियारे में एक

दीपशिखा सी चमक रही है,

हृदय में भी अब मांग सजा कर

कुछ उम्मीदें दमक रही हैं!


हृदय के बीहड़ वन में फिर से

एक प्यारा सा फूल खिला है

कोई दुनिया को समझाओ

आज चकोर को चाँद मिला है!

 

आज कोई अमावस कोई जैसे

पूर्णिमा में नहा रही है

आज मेरी मेरी बाहों में सिमटी

दीपशिखा शर्मा रही है!

 

पर मेरी जीवन पथ साथी

रीत प्रीत की तुम अपनाना

ये पीयूष बन स्नेह जलेगा

दीपशिखा बन तुम इठलाना!

 

जीवन के सूने पथ पर तुम

गीत प्रीत के बुनति जाना

मैं काँटों पर बिच्छ जाऊँगा

तुम फूलों को चुनती जाना!

 

मेरी प्रीत का ये ध्रुव तारा

पाकर तुमको चमक उठेगा

इसे सजा लो मांग में अपनी

ये पीयूष फिर दमक उठेगा!

 

जीवन में आगे भी यूं ही

रातें होंगी, समर रहेगा

पर सुहाग सिन्दूर तुम्हारा

बन पीयूष फिर अमर रहेगा!

 

दीपशिखा अब तुम आई हो

जीवन मेरा निखर चुका है!

एक फूल संसार में मेरे

चड्डी पहन के खिल उठा है!


उसकी हंसी से मेरे मन में,

कई उमंगें दमक रही हैं,

मासूम आंखों में उसकी

कई बिजलीया चमक रही हैं!

 

वो जब रातों को नींद में

मेरे ऊपर आ जाता है,

गुस्सा आता है मुझको पर

प्यार बहुत ज्यादा आता है!

 

पोटली है प्रश्नों की वो

उत्तर देना होता है,

उन्हीं उत्तरों में मेरे

जीवन का छिपा एक कोना है!

 

उसकी सूरत देख के मुझको

जीना को जी करता है,

बेस्ट फ्रेंड बना लू उसको

हर पल मन ये करता है!

 

अभिशप्त एक जीवन का कुछ

बोझ में अब तक झेल रहा हूं,

पर तेरी आंखों की मस्ती

जीवन में मैं खेल रहा हूं!


 

थोड़ी उमर जब हो जाएगी

उत्तर अपने पा ही लेगा

अपने जीवन पथ की गाथा

अपने सुरों में गा ही लेगा!

 

पर मेरे मासूम से साथी

एक बात तू याद ये रखना

किसी के प्रति भी द्वेष भावना

अपने हृदय में कभी न रखना!

 

एक दिन भी आएगा जब,

तू भी पिता बन जाएगा,

पुत्र को तेरे गर्व हो तुझ पर

विश्वास मुझे, तू कर जाएगा!

 

इस शापित जीवन में मेरे

तू वरदान सा आया है,

भविष्य की तेरी कल्पना से

एक कोलाहल छाया है!

 

बड़ा होकर क्या करेगा?

ये एक प्रश्न खटकता है,

पर जो चाहे वो तू करना,

निश्चित ये उत्तर करता है!

 

बाघ चाचा, शेर चाचा

सुन कर जब तो जाता है,

इर्ष्या सी होती मुझको,

मुझको हुनर ना आता है!


To be continued.........


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