कर दो मुझे दृष्टीहीन
कर दो मुझे दृष्टीहीन
कर दो मुझे दृष्टीहीन,
बस इतना कर दो।
मत दिखाओ अपना कालरुप,
मत हो जाओ सष्ष्टि्हीन।
मत दिखाओ और विनाश,
मत करो अब और हताश।
नहीं चाहिए सौन्दर्य शक्ति,
नहीं चाहिए ज्ञान।
इच्छित है आपके द्वारा,
आप ही का मान।
हो भी क्यों,
सृष्टा का अपमान?
क्योंकि......
सृष्टा है तो सृष्टि है,
सृष्टि है तो ब्रम्हाडं है ,
ब्रम्हाडं है तो प्रकृति है,
प्रकृति है तो जीव हैं,
और जीव ही तो हम हैं।
परन्तु....
फिर साथ में अहं है,
शक्ति है, सौन्दर्य है, भ्रम है।
कुछ नहीं चाहता मैं,
सब स्वीकार है।
पर दान में ,
यह मिश्रण अस्वीकार है।
इसलिए कहता हूं,
कर दो,
कर दो मुझे दृष्टिहीन,
बस इतना कर दो।
मत दिखाओ कालरुप,
मत हो जाओ सृष्टिहीन।