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Piyush Pant

Abstract Romance

4.3  

Piyush Pant

Abstract Romance

तुम मेरी कविता बन जाओ!

तुम मेरी कविता बन जाओ!

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शब्द नहीं, लय ताल नहीं हैं,

तन तो है पर प्राण नहीं हैं!

कोरे पृष्ठों के अरण्य में,

ना आकाश, प्रकाश नहीं है!

मेरे अधरों को वाणी दो,

गीतों की सरिता बन जाओ!

शब्दों को लय, प्राण दो तन को,

तुम मेरी कविता बन जाओ!


अधरों से शब्दों को छूकर,

तन को मन को पुलकित कर दो!

गीतों को सुनकर मेरे तुम,

जिह्वा मेरी मधुमय कर दो!

हृदय के सूने उजड़े वन में,

तुम कुसुमित हरिता बन जाओ!

शब्दों को लय, प्राण दो तन को,

तुम मेरी कविता बन जाओ!


मेरे जीवन को सुरभित कर

भावों की बरसात करा दो!

हृदय के सूने गलियारे में,

प्रेम पुष्प की हाट लगा दो!

मेरे जीवन के दर्शन में,

तुम भॻवदगीता बन जाओ!

शब्दों को लय, प्राण दो तन को,

तुम मेरी कविता बन जाओ!



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