"जल धारा "
"जल धारा "
एक जलधारा हूँ मैं
पहाड़ों से गिरूं
तो झरना हूँ मैं
तेज धारा बन कर बहूँ
तो नदी हूँ मैं
सागर सागर में मिलूं
तो महासागर हूँ मैं ||
माँ के आँखों से गिरूं
तो ममता के आंसू हूँ मैं
बेटियों के आँखों से निकलूँ
तो मोतियों के माला हूँ मैं
छोटी छोटी कामयाबी पर
जब पिताजी के
वक्ष स्थल भिजा दूँ
तो आनंदश्रु हूँ मैं ||
सूखे हुए जमीन पर गिरूँ
तो प्यासी धरती के
राहत हूँ मैं
कृषक के खेत खलिहान में गिरूँ
तो खुशियों के बौछार हूँ मैं
चकोर चाकोरियों के
अंग अंग में गिरूँ
तो प्यार के इजहार हूँ मैं ||
झरने, नदी, सागर, महासागर
आँख, घड़े, कमण्डल, तालाब
सब में मैं भर जाऊँ
उन की ही आकर ले कर
उन सभी के पूर्णता हूँ मैं
फिर भी अभिन्न, स्वतंत्र
एक जलधारा हूँ मैं ||
