मैं एक आम किसान
मैं एक आम किसान
मैं फिर रहा हूं
सारे
नगर सारा शहर
कभी इस गली
तो;कभी उस
गली,
बेचना है मुझको
मेरे
उपजायें सारे अनाज
चाहे इस गली मे हो
या ;उस गली !!
मेरी
कड़ी मेहनत से
उपजाए यह अनाज
मुझसे कभी कभी
कोसों दूर
भाग रहा है,
मंडीओ मे
कम दामों मे
बिक कर
शहर मे
महँगी कीमतों मे
सौदा हो रहा है,
मेरे घर मे तो
डाल -भात -सब्जी पक रहे है
मगर सुना है की
सिंघू बॉर्डर पर
घी पूरी श्रीखंड की
नदीयां बह रहे है !!
कभी कभी
रोटी चटनी मिलना
आसान सा
ना लगता मुझको,
मौसम केमार से
ज्यादा
मुनाफे खोर
ब्यापारियों से
दर लगता है मुझको,
मन की बात में
दब जाते है
कई बार
पर मेने की बात
बेखुबी
एक मसीहा
कह जाते है
कई बार !!
नारा
यह खूब चलता है
की, बच्चों के
शिक्षा मे
देश के भविष्य
खड़ा है,
पर जो कॉपी किताबें
कुछ अर्श पहले
पाँच रूपया हुआ
करते थे
अब उन पर
पंद्रह रूपए
चढ़ा है,
कैसे करूँ
विद्यालय की
यह नये प्रकार के
पहनाब
जिस ने
महंगाई केचादर
ओढ़े है !
विकास के नाम पर
आज कल
जो कुछ हो रहा है
उस चक्की मे
सबसेज्यादा
पीस रहा हूं मैं,
मेरे जमीन सौदा
हो रहे हैँ
मेरे अनचाहे मोल पर
फिर बिक जाते
है राइशो मे
अनमोल भाव पर,
सभी कुछ जनता
हूं मैं
और चुप रह हूँ
क्यों की ;
पैसो से ज्यादा प्यारा
मुझ को है मेरे
अखंड परिवार !!
पल पल जी
रहा हूं मैं
एक अजीब सा
दर
मन मे ले कर
रोटी, कपड़ा तो
मुश्किलों
से मिला जाते हैँ
पर
मेरे सर पर जो छत है
ना उड़ जाए कहीं
जिन मे लगकर
भू - माफिओं के
शनि नजर,
चाहे हो एत वार
या फिर शनि वार !!
मेरे
बहू बेटिओं पे
कोई आंच ना आ जावे
इस चिंताए भी
मुझ को
सताते है
कई बार,
विद्यालयों, दफ़्तरों, मंदिरों से
वो लौट आए
सही सलामत
मेरी अती जाती
सासों मे
यह दुआएं
रहते है हर बार,
अब क्या गुजारिश करूँ
किसानों के यह नये
चतुर ठीकेदारों से
जिन्होंने
के वल
खुद को चमका रहे हैँ
देश की अस्मिता से
खेलवाड़ कर कर कर
फिर ;
दूसरों मे भ्रम और आक्रोश
फैला फैला कर !
