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Sitaram Budhibaman Behera

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Sitaram Budhibaman Behera

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"नज़ारे "

"नज़ारे "

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आज इसी की ख्यालों में

लिपटे रहूँ मैं देर तलक

आज इसी की हसीन चेहरों पे

निहारते रहूँ मैं देर तलक

सारे नज़ारों को

कैद कर लूँ

मेरे मन की गहराइयों मैं आज 

कोई हमें आवाज़ ना दो

बस, देर तलक !


कितनी दिनों के बाद यहाँ

रिमझिम सावन आई है अब

बे जान वीराने इन पहाड़ियों में

हलकी सी हरियाली छाई है अब

इन पहाड़ी झरणों की

बाली उमरिया कह रही है

" सफ़र तय आज हैं अपनी

दूर एक मंजिल तलक " !


काले काले बादलों ने यहाँ

डेरे डाल दी हैं अब

ठन्डे ठन्डे हवाओं के

आगोश में

सारी धरती आ चुकी है अब

तप तपाती गर्मी

अब छुप जायेंगे कहीं

बरखा रानी के पायल

छमकेंगे यहाँ

बड़े समय तलक !


पक्षियों के घोसलों से

प्यारी प्यारी आवाजें

आ रहे हैं अब

धरती माँ के चेहरों पे

एक अजीब सी

रौनक हैं अब

इन नजारों को

अपनी दिलों में

उतरने दो बस,

आवाज़ ना दो कोई

आज हमें देर तलक !


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