माँ भी बीमार होती है
माँ भी बीमार होती है
माँ भी बीमार होती है
कभी कभी
असीम
संवेदना, अकलनीय
कस्ट, अनगिनत यातना
अपनी विशाल वक्ष मे
दफना देने वाली माँ
जब सारे
बच्चों को
एक साथ
बीमार देखती है
बीमार खुद
हो जाती
है
कभी कभी !!
वो माँ जानती है
वे ;
जिन को पैदा की है
वे ;
जिन को गोद ली है
कोई उन मे से
होनहार है
तो ' कोई मंद बुद्धि
कोई ह्रस्ट पृस्ट
तंदरुस्त है
तो '
कोई थोड़ी सी
अल्प बुद्धि
फिर भी
सभी को संभाल
लेती है
अपनी
ममता की डोरी मे
जकड कर
और;
कभी ना थकने वाली माँ,
कभी ना टूटने वाली माँ
जब एक साथ
कई बच्चों
को बीमार
देखती है
तो '
वो अंदर से
टूट जाती है
कभी कभी !!
तभी फिर
वो
आसमान के ओर
अपनी बाहें
फैलाती है
कुदरत की
प्राण शक्तिओं
को
फिर से भर
लेने की
प्रण करती है
अपनी अटूट
मनोवल को
एकिठा कर लेती है
फिर,
तब जैसे
कोई अचम्भा
होता है
उस से कभी कोई
बिछड़ने वाले बच्चें
उसे खुद से ज्यादा
प्यार करने वाले बच्चें
सारे रंग भेद, सारे सरहदें
पार कर
दौड़ पड़ते है
उस दुखयारी
माँ की और
और ;
यह वसुंधरा बन
जाती
है "वसुधैव कुटुंबकम "
कभी कभी !!
ऐ
मेरे
हम वतन
क्यूं ना हम
यह कसम
खाएं अभी अभी
जो,
यह जल जमीन वायु झरने
पहाड़ नदियाँ सागर अरन्ये
बचा लेते है उन्हें
वन्द कर दोहने
चलाते है
अपनी संसार
लगा कर अपनी
सीमित साधने !
आओ हजारों
शौकड़ो हाथे
फैलाते है
उन परम शक्ति के
इवादत मे
और
फिर देखना
यह काली
साया हट जाएगी
बहुत
ही कम समय मे
वस ;
हमारी सम्मिलित
प्रयास जारी
रखना
है
यह धरती
माँ को
जरूरत पड़े
जब भी जब भी !!
