Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.
Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.

प्रवीन शर्मा

Tragedy

5  

प्रवीन शर्मा

Tragedy

शर्माजी के अनुभव: पराश्रित

शर्माजी के अनुभव: पराश्रित

2 mins
423


ढलती शाम और पार्क का किनारा

सुकून की तलाश में बैठा मैं बेचारा


स्वार्थियों के हुजूम दुनिया मे छाये है

दर्द सुनना भी अब एक व्यवसाय है


मेरी तरह तन्हा है, पर चिड़िया तो गाती है

क्या जिंदगी है, खाती है, पीती है, सो जाती है


एक मैं हूँ जो सुकून के लिए भी पराश्रित 

अभी कुछ हुआ जिसे देखकर मैं था चकित


एक वृद्ध आये मेरे पास ही आकर बैठे

हम दोनों ही चुप थे मैं आदतन वो दुख सहते


देखकर लगा जैसे छू लूं तो रो देंगे अभी

दुख बढ़ता गया हो और कंधा नहीं मिला कभी


हिम्मत जुटा कर पूछ लेना चाहता था मैं

कि तभी एक छोटी गेंद ने चौका दिया हमें


कुछ पल बाद एक नन्ही परी आई

बच्ची से नजर मेरी हट नहीं पाई


बोली मेरी बॉल लेने आई हूँ मैं

कहकर जैसे शहद घोल दिया हो कानो में


बॉल लेकर वृद्ध की आंखों में झांक गई 

रो रहे है अंकल, कहकर आंखे नहीं दिल तक भांप गई


वृद्ध फफक पड़े उसके कदमो में सर रखकर 

बच्ची भी रो रही थी साथ उनका सिर सहलाकर


कुछ पल में गुबार जब ठंडा हो लिया 

बोले जाओ खेलो अब मैं ठीक हूँ बिटिया


छुटकी चली गई मुस्कुराकर

वृद्ध अब ठीक थे किसी बोझ को बहाकर


पूछ ही लिया मैंने चाचा क्या मिला आंसू बहाकर

बोले अभी लौटा हूँ मैं जन्नत तक जाकर


जरा खुलकर कहिए चाचा, मैं कुछ समझा नहीं

बोले ये आंसू प्यार थे मेरी बेटी को जो कभी पहुंचे नहीं


चाचा क्या बेटी आपकी बहुत दूर गई

बोले अरे नहीं वो अपने घर से भाग गई


ये आंसू संभाले थे उसकी विदाई के लिए

इन्हें साथ ढोकर अब बूढ़ा कैसे जिये


आंसू नहीं थे बोझ थे मुझको थकाते थे

प्यार कम रह गया मेरा हर वक़्त जताते थे


अब स्वतंत्र है वो तो पराश्रित मैं भी नहीं

इस अर्थहीन पानी का अर्थ कुछ भी नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy