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प्रवीन शर्मा

Abstract Tragedy

4  

प्रवीन शर्मा

Abstract Tragedy

बस यही मेरी ख़ता है

बस यही मेरी ख़ता है

2 mins
260


बुरा कैसे कहूँ उसे, कहने में बुरा लगता है।

जब वो ताने देती है, सीने पर छुरा लगता है।

दोनों एक छत नीचे है मगर उत्तर और दक्षिण से,

मजबूरी की गांठ से दोनों का पहलू जुड़ा लगता है।


पहली बार जब देखा उसे देखता रह गया।

मेरी आँखों में उसका अक्स ठहरा रह गया।

लगा वो मेरी जिंदगी है और मैं सांसे उसकी,

उस अधूरी में मैं कहीं पूरा रह गया।


सात फेरों में सब फासले मेटने की कसम ली।

सुख या दुख जो सही, बांटने की कसम ली।

किस्मत का करम कब कहर बन गया जैसे,

मेरी खुशी ने मेरी खुशी की हंसी ही निगल ली।


घर बसने से कुछ बर्बाद हुआ लगता है।

ऐसा खाली हूँ जो सबको भरा लगता है।

पुरानी शादियां हो जाती है पुराने कपड़ो की तरह,

खुशी तो नही कोई, बस तन ढका लगता है।


उसको जानना टेढ़ी खीर थी मुझे।

नसीहत थी हर पल तकदीर की मुझे।

खुशी की आदत खुशफहमी रह गई ,

किसी से जुड़ना मेरे टूटने की लकीर थी मुझे।


उसकी खुशी को मैंने खुश रहना छोड़ दिया।

कहती है कितने खुश हो तुम, मेरा करम फोड़ दिया।

सौभाग्य का टोटका कोई नही होता पता है अब,

भगवान नाम वाले पत्थरो ने मेरा हौसला तोड़ दिया।


कुसूर ढूंढने से क्या मिला, कुसूर होने के बाद।

गर जिंदगी में जिंदगी ही नही, तो फिर कैसा आबाद।

सिर्फ तौबा तौबा ही बाकी है हर पल को मेरी,

कब ये सब खत्म हो बस जिंदगी मेरी कोई फरियाद।


जब तक सांस है, इसे ढोना ही मेरा फलसफा है।

या खुदा बेजरूरत सी हंसी खुशी ले तुझको अता है।

सबेरे की तलाश उनको मुबारक जो दिन में संभलेंगे,

हमें तो दिन, रात का ही कोई चेहरा लगता है।

कोई तो दुआ थी जो बद्दुआ सी लगी मुझे

वरना टूट कर चाहना बस यही मेरी ख़ता है

बस यही मेरी ख़ता है...........


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