रोटी
रोटी
भूख उठती पेट में तो आह भरती बोटियां,
सन्न सन्नाटा रहे जब बोलती है रोटियां।
महल में सेंकी हुई हो या पकी हो खाक से,
फेंक कर झोली में आये याकि माँ के हाथ से,
टेड़ी मेड़ी हों या झुलसी, मांगते सब रोटियां,
चूल्हे-चौके चौक हो लें, बांचती जब रोटियां।
छीनकर या मांगकर या मारकर मिलती कभी,
पेट अफरा हो तो लगता बात छोटी सी कही,
बेबकूफी है ये कहना, कुछ बोलती है रोटियां।
फिर भी दुनिया वो करे जो चाहती है रोटियां।
उम्र कितनी ही गई, कितनी अभी बाकी रही,
रोजी रोटी के लिए, क्या कट गई, क्या कट रही,
गोल गोल चक्के पे चक्का कितना घुमाती रोटियां।
माँ के हाथों में है कौतुक, गोल आती है रोटियां।
रोटी नही वरदान है, इंसान हम सब बन गए,
कीड़े मकोड़ो की धरा पर हम जरा सुधर गए,
शिकारियों की जात को संवार जाती रोटियां।
धन्य हो प्रभु लीला तुम्हारी माटी से आती रोटियां।