हर सुबह ऐसी ही
हर सुबह ऐसी ही
बाहर धुंध, कोहरा, सर्द हवाओं का कहर।
अंदर तुम्हारी उंगलियां, मेरे बाल और चौथा पहर।
अलसाई आंखों पर गिरती उठती पलकें।
उलझे बालों में कितने ही सितारे झलकें।
बार बार तेरा बुदबुदा कर इजहार करना।
मेरे ना सुन पाने पर ठहाके का ज्वार भरना।
मेरा रुठकर तेरे सीने में चेहरा छुपाना।
मुझे पता है तुम्हे आता है मुझको मनाना।
फिर तेरा चूमना माथा, आंखे और गालों को।
कोरे होंठ छोड़, तोड़ देना मेरे खयालों को।
कातिल मुस्कान, शरारत की अदा भरना।
कुछ पल को मेरी धड़कन का भी दगा करना।
ऐसी सुबह चाहूं ये बार बार आये।
सुनहरी यादों के मोती सा तेरा प्यार लाये।
काश वो पल ठहर जाए जब तेरा हाथ, हाथ आये।
मीठी मुस्कान, चुस्की भर चाय में दिन संवर जाए।
उम्र साल दो साल या कितनी लंबी हो जाये।
मैं बस चाहूं हर सुबह तेरी बाहों में पनाह पाये।

